सरकारी अनुदान पर लिखा हुआ व्यंग्य

मुझे सरकारी अनुदान पर कुछ शोध करने और जनजागरूकता फैलाने का ठेका मिला है। इसलिए इस लेख में मैंने आप सब के लिए तथ्य ढूढ़-ढूढ़कर निकाला है।  'आज मेरा ऊपरी माला खाली है।'  ऐसा सरकार का थोथा विरोध करके अपने आप को महाबुद्धिजीवी होने का गुमान पाले हुए लोग कह सकते हैं। प्रमाणपत्र भी दे सकते हैं हालांकि इस देश में प्रमाणपत्रों को बेचकर चूरन भी नहीं खाया जा सकता है। 

अमरीका ने ईराक पर हमला किया तो विजयोपरांत वहाँ की सत्ता अपने 'पिट्ठू' को सौंपी। वही अफगानिस्तान में भी किया हालांकि वे तालिबान को पीठ दिखाकर भाग गये। लेकिन अमरीका अमरीका है और अंग्रेज ठहरे अंग्रेज... इसलिए वे जब भारत से गये तो उन्होंने यहाँ की सत्ता अपने पिट्ठू 'सावरकर' और संघ को नहीं सौंपी बल्कि अपने धुर विरोधी जवाहरलाल को देकर चले गये। 

आजादी के बाद बटुकेस्वर दत्त जब अपने जिले के कलेक्टर से काम मांगने गये तो उसने कहा अपने जेल जाने का सुबूत लेकर आओ। उन्होंने भी अंग्रेजों से माफी मांगी थी सो मारे शर्म के चुपचाप गये और बीड़ी बनाने वाली फैक्ट्री में काम करने लगे। बाद में बिचारे क्षय रोग से मरे। 

जब भगत सिंह पर दिल्ली में अंग्रेजों की अदालत में असेंबली में बम फेंकने का केस चला तो भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ अंग्रेजों के सामने 'सीना तानकर' गवाही देने वालों में एक शोभा सिंह थे और दुसरे थे शादी लाल यहाँ आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि ये दोनों भी संघ की शाखा में जाते थे। और इन दोनों को ऐसा करने के लिए तत्कालीन संघ प्रमुख डॉक्टर हेडगेवार ने ही कहा था। आजादी के बाद कांग्रेस ने इनके परिवार का जीना हराम कर दिया। बाद में जब संघियों की सरकार आई तो उन्होंने इनके नाम पर बड़े-बड़े स्कूल और स्मारक बनवाये। सबूत के तौर पर आप सर शोभा सिंह स्कूल को ले सकते हैं।

मुहम्मद गौरी ने भी जब दिल्ली पर चढाई की तो यहाँ पृथ्वी राज की ओर से लड़ने वाले भी सारे कांग्रेसी और कम्युनिस्ट ही थे। वहीं जयचंद जैसे संघी ने धोखेबाजी करके उसे जिता दिया और देश में सल्तनत काल की नींव पड़ी। 

महमूद गजनवी ने जब रात के अंधरे में सोमनाथ का मंदिर लूटा उस समय उसे टॉर्च दिखाने वाले भी पूरे संघी ही थे। साथ ही जो थोड़ा बहुत विरोध हुआ वो करने वाले सारे कांग्रेसी और कम्युनिस्ट थे। 

आर्यभट्ट ने जिस शून्य की खोज की वो तो हमें किताबों में खूब पढ़ाया जाता है पर ये हमें कोई नहीं बताता कि वो कांग्रेसी थे जिनके नोट्स फाड़ देने के असंख्य प्रयास संघियों द्वारा किये गये। लेकिन कांग्रेस की सतर्कता और सजगता के कारण ही वो ऐसा नहीं कर पाए वरना आज हम उनका नाम भी न जानते होते। 

राहु और केतु नामक दो दानव जो हमारे सूर्य और चंद्रमा को समय-समय निगलकर उनमें ग्रहण लगाते रहते हैं वे दोनों भी संघी हैं और नियमित तौर पर शाखाओं में जाते हैं। वहीं बेचारे सूर्य और चंद्रमा जो रात दिन धरती की सेवा में लगे रहते हैं लेकिन उन्होंने कभी इस बात का दावा भी नहीं किया कि वो कांग्रेसी हैं। 

बाबर यहाँ कोई हमला करने नहीं बल्कि फूलों का व्यापार करने आया था। जिसकी पीढ़ियों ने यहाँ इत्र के बड़े बड़े कारखाने लगवाए। बीच में यहाँ नादिरशाह नामक संघी आया था जिसने दिल्ली में कत्लेआम करवाया वरना अब तक कश्मीर से कन्याकुमारी तक गेंदा और गुलाब ही खिल रहे होते। 

 इतिहास भी कोई पढ़ने वाली चीज है। उसे क्यों पढ़ें। जब जिसकी जो मर्जी आयी लिखवा दिया। मैं तो सिर्फ इतना जानता हूँ कि अगर दूसरा विश्व युद्ध नाजी सेना जीत जाती तो आज हम हिटलर की बर्बरता के नहीं बल्कि अमेरिकन्स और अंग्रेजों की बर्बरता के किस्से पढ़ रहे होते। नेता जी सुभाष चंद्र बोष देश के चांसलर बन गए होते। बहुत संभव है कि वो भी भारत के लिए क्यूबा वाले फिदेलकास्त्रो ही साबित होते। 

तो भाइयों और भैनो अपने घर की चिंता करो, बच्चों को खूब पढ़ाओ और लिखाओ। सप्ताह के सातों दिन उन्हें अलग-अलग मजहब के प्रतिष्ठानों में भेजो। हर विचारधारा के बड़े लोगों के लिखे लेख पढवाओ और भाषण सुनवाओ। ताकि हमारी पीढ़ी की तरह आने वाली पीढ़ी भी 'भेंगी' ही न रह जाय, 'कन्फर्मेशन बायस' का शिकार न हो। वर्तमान पीढ़ी जैसी भी है? उसे पहले दो और दो पांच बताया गया और सात बताकर सुधारने की कोशिश की जा रही है।

#चित्रगुप्त

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