समानता
समानता
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"क्या ख़ाक समानता है उस्ताद? उधर देखो... कलेक्टर साहब के आवास के बाहर जो सिपाही संतरी ड्यूटी में लगे हैं। बेचारे दिन रात ड्यूटी बजाते हैं। फिर भी आते जाते हुए कलेक्टर साहब की डांट खाते हैं। वहीं दूसरी तरफ कलेक्टर साहब... रात भर मौज से सोते हैं। सुबह भी आराम से उठते हैं। सरकारी आवास, सरकारी नौकर ...ये सब तो है ही तनख्वाह भी इन संतरियों का चार से पांच गुना ज्यादा उठाते हैं।" पूरे तैस में आकर जमूरे ने अपना सवाल दागा।
जमूरे के सवाल पर मदारी ने अपनी मूछों को एक दो बार घुमाया और डमरू के डुडुम-डुडुम के साथ बोलना शुरू किया।
"दुनिया गोल है जमूरे... आज के कलेक्टर साहब पढ़ाई के दौरान जब रात-रात भर जागकर पढ़ते रहे होंगे? उस समय ये संतरी ड्यूटी में लगे सिपाही टांग फैलाकर आराम से सोते रहे होंगे। भरोसा नहीं है तो कभी चलो मुखर्जीनगर देश के कोने-कोने से आये पढाकुओं जमघट वहीं पर है।"
इतना कहकर मदारी ने फिर से डमरू बजाया और आगे बोलना शुरू किया। "जो जहाँ है, जैसा है, जो भी है? वो उसका अपना चयन है। अपनी मेहनत है। उसके माँ बाप के कर्म है।(भाग्य वाला नहीं)"
"तो क्या ये असमानता नहीं है उस्ताद?"
"बाकी जो भी यार लेकिन प्रकृति का नियम तो यही है न कि जिसने जितना गुड़ डाला है उसकी खीर उतनी ही मीठी होगी।"
"तो फिर समानता क्या है?"
"समानता का मतलब सिर्फ इतना है जमूरे कि कत्ल चाहे मंत्री करें प्रधानमंत्री मंत्री करें या कोई खेतिहर मजदूर उसपर धारा 302 ही लगेगी। बाकी हाथ की पांचों उंगलियां न कभी बराबर थीं न हैं और न ही कभी होने वाली हैं। देश को चलाने के लिए फाइटर प्लेन उड़ाने वाला पायलट तो चाहिए ही साथ में पैडल रिक्शा चलाने वाला गरीब भी चाहिए। वरना सामाजिक संरचना बिगड़ जाएगी। काम रुक जाएंगे।"
"तो क्या जो गरीब हैं, दमित हैं, वंचित है, वो हमेशा गरीब दमित और वंचित ही रहें?"
"बिल्कुल न रहें जमूरे! लेकिन उसका ये ईर्ष्या और द्वेष नहीं है। उसका इलाज है कि आज जो संतरी हैं वो अपने बच्चों को समझाएं कि उनमें कौन सी कमी रह गई थी जिससे वो कलेक्टर न बन पाए। सही मेहनत और सकारात्मक पहल सफलता के हर दरवाजे खोल देगी।"
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