दो भेंगे

दो भेंगे
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किसी राज्य में दो भेंगे थे। जिन्हें सब भेंगा भेंगा कहकर चिढ़ाते थे। 

वैसे भेंगापन उनका बचपन का दोष नहीं था लेकिन उनकी फितरत ही कुछ ऐसी थी कि किसी ने उन्हें मारकर ऐसा कर दिया था। अब इसे प्रकृति का करामात कहें या मारने वाले कलाकारी कि दोनों में से एक दाहिनी तरफ को भेंगा हुआ और दूसरा बाँयी तरफ...

दोनों से ही काम तो कुछ सधता न था इसलिए वे बैठे बैठे बातें बनाते रहते थे। इसपर किसी ने सलाह दे दिया कि जो बैठे बिठाए बातें बनाते रहते हो उसे किसी कागज पर उतार लिया करो तो लेखक बन सकते हो, बस वहीं से इनके लेखक होने की शुरुआत हो गई। 

वैसे तो उन्हें लेखक होने का 'ल' भी नहीं पता, लेकिन गाँव से संबंध होने के कारण 'ल' से और भी बहुत कुछ जो भी हो सकता है वो सब उन्हें पता था। इसलिए और कुछ आये न आये वे गालियां बहुत बेहतरीन देते थे जिस कारण अधिकतर आम लोग उनसे बचकर ही रहते थे। हालांकि इलाके के लुच्चे और लफंगे लोगों में उनकी ख्याति धर्म में  अंधविश्वास की तरह फैल गई थी। 

'फालतू पंगे कौन ले?' वाले सिद्धांत पर चलते हुए लोग इनसे बहस न करके 'हाँ में हाँ' मिलाने वाले सिद्धांत का सहारा लेते थे। इसी वजह से इन्हें अपने ज्ञानी होने का तगड़ा गुमान भी हो गया था। ज्ञान का गुमान था तो धीरे धीरे ज्ञान बांटने वाला शगल भी सीख लिया और उसके बाद तो कोई ले न ले पर हर जगह ज्ञान बांटना उनका परम धर्म ही हो गया। हालांकि ज्ञान बांटने का उनका मकसद ये तो कतई नहीं रहता था कि लोग ज्ञानी हो जाएं।  बल्कि ज्ञान बाटते समय उनका पूरा का पूरा जोर सिर्फ और सिर्फ इस बात पर रहता कि लोग समझें कि ये ज्ञानी  हैं। 

 हालांकि इनकी दो कौड़ी की सड़ी हुई बातें सुनकर लोग उन्हें ज्ञानी कम हूतिया ज्यादा समझते थे। अब यहाँ हूतिया को पढ़कर अगर आप सोच रहे हों कि यहाँ 'ह' की जगह 'च' होना चाहिए तो आप बिलकुल ही गलत सोच रहे हैं। क्योंकि तब तक इस 'च' वाले तिया पर पूरा का पूरा अधिकार चौबीस घंटे लगातार वाले न्यूज़ चैनल वालों ने डंके की चोट पर अपने लिए सुरक्षित करवा लिया था। 

दाहिने वाले भेंगे को सब दाहिने का दिखता और बाएं वाले को सब बाएं का अब इसका खामियाजा ये हुआ जो पहले वाले के कहने में आये वो दक्षिण पंथी हो गये और जो दूसरे वाले के कहने पर चले वो वामपंथी।  

देश में लोकतंत्र आ जाने के कारण एक बार बाएं वाले भेंगे के किसी चमचे ने सरकार बना ली। फिर क्या था इस भेंगे ने जनता की दाईं आंख फोड़वाने का पूरा बंदोबस्त कर लिया। जगह जगह बड़े बड़े माइकों पर बांये अंगों के गुणगान होने लगे। तरह तरह की अप्सराएं अपना बांया कूल्हा मटकाते हुए नर्तन करने लगीं। दाहिने हाथ के लूले और दाहिने पाँव के लंगड़ों का हर तरफ बोलबाला हो गया। खाने से लेकर धुलाने (नित्यक्रिया के बाद वाला) तक का काम सब बांए हाथ से किया जाने लगा। दाहिने अंग का इस्तेमाल पूरी तरह से वर्जित होने के कारण जनता में अधिकांश को दक्षिण दिशा भ्रम की शिकायत रहने लगी। 

वामांगियों का हर ओर बोलबाला होने के कारण एक दिन इस भेंगे ने सत्ता प्रमुख से जनता का दाँया अंग भंग करवाने का बिल भी पास करा लिया। फिर क्या था। ढूढ़ ढूढ़ कर लोगों की दाईं आंख फोड़ी जाने लगी। दाहिने हाथ काटे जाने लगे दाहिने पैर तोड़े जाने लगे। थोड़े ही दिन में सारी जनता एक रूप हो गई। 

जनता में त्राहिमाम मच गया। तब दाहिने वाले भेंगे ने इस मौके का फायदा उठाया औऱ जनता को दक्षिण पंथ के फायदे की शिक्षा देने लगा। देखते ही देखते जनता जाग उठी। अगले चुनाव में दाहिने वाले भेंगे के किसी चेले को सत्ता मिली। तब इस वाले भेंगे ने वामांगो के साथ वही सब करवाया जो इससे पहले वाले भेंगे ने दाहिने वाले अंगों के साथ करवाया था। 

जब सारी जनता  पूरी तरह अपाहिज हो गई और इन्हें भेंगा कहकर चिढ़ाने वाला कोई न रहा तो दोनों भेंगे सुख पूर्वक रहने लगे। 

#चित्रगुप्त

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