कुत्ता पुराण

कुत्ता पुराण
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सुना है कि कुत्ते और बच्चे में एक ख़ास गुण होता है कि वह व्यक्ति के अंदर छुपे जलन कुढ़न और ईर्ष्या को दूर से ही पहचान लेते हैं। इसलिए अक्सर देखा होगा कि किसी सुंदर-मुन्दर से दिखने वाले  के पास जाते ही बच्चा रोने लगता है या कुत्ता उसे देखते ही भौंकता है। वहीं इसके विपरीत किसी कांतिहीन आदमी को देखकर भी बच्चा हंसता है और उसकी गोदी में चला जाता है या कोई कुत्ता उसे देखते ही दुम हिलाने लगता है। 

इसलिए किसी भी आदमी के व्यक्तित्व परीक्षण के लिए ये टेस्ट एक बेहतर विकल्प हो सकता है।

बच्चा तो मनमौजी होता है इसलिए उससे तो ऐसा कोई काम लिया नहीं जा सकता दूसरे देश में बालश्रम निरोधक कानून भी हैं। कोई पुलिस का लफड़ा हुआ तो उनका पाँव पूजते पूजते अपने ही पाँव भारी हो जाएंगे, दूसरे अगर वो बच्चा किसी अतिरिक्त चतुर मम्मी का हुआ तब तो वो ऊदबिलाव जैसे ऐसा रूप दिखाएगी कि आपका सारा परीक्षण धरा का धरा रह जायेगा। पर हां ऐसे किसी काम में कुत्तों को आजमाया जा सकता है। वैसे भी कुत्ते बाकी बहुत सारे काम तो कर ही रहे हैं। एक काम व्यक्ति के चरित्र चित्रण का भी कर देंगे तो कौन सा पहाड़ टूट जाएगा। वैसे इस बात में एक डर भी है कि कुत्ता तो ठहरा आखिर कुत्ता ही वो अपने पराए का ज्यादा भेद तो जानता नहीं उसने कहीं किसी ऐसे को चरित्र परीक्षण में फेल कर दिया जिसके हाथ में अपनी प्रॉमोशन की फाइल हुई तो क्या होगा? 

ऊपर वाली बात वैसे घरवाली को पता नहीं है वरना घर वाला कुत्ता जो मुझे देखकर अक्सर भौकता रहता है इस पर वो शोध कार्य जरूर करतीं...। एक दिन वैसे वो पूछ तो रही थीं कि ये डॉगी तुम्हें देखकर इतना भौंकता क्यों है? लेकिन जैसे ही मैंने कहा ये तुम्हारे भाई को  देखकर भी तो भौंकता है। तो वो चुप हो गईं। वैसे महिलाओं का मायका प्रेम तो जगजाहिर है ही तो इससे बड़ा दूसरा कोई ब्रम्हास्त्र है भी नहीं कि अपनी कोई कमी नजर आते ही उसे उसके किसी मायके वाले से जोड़ दो फौरन ही वो कमी कमी न रहकर अच्छाई में तब्दील हो जाएगी। 

बात छठी इन्द्रिय की हो रही थी तो बच्चे में तो ये उसकी उम्र बढ़ने के साथ साथ समाप्त हो जाती है लेकिन कुत्ते में आजन्म बनी रहती है बशर्ते वह लिखा पढ़ा कर पालतू न बना लिया जाय।

कुत्ते में वैसे तो कई गुण होते हैं जिनमें से ये एक भी प्रमुख है। पालने वाले कई कारणों से इन्हें पालते हैं। जैसे एक मेरे जानने वाले हैं उन्होंने तो कुत्ता बस पाल ही इसलिए रखा है ताकि वे उसे समय समय पर लतिया सकें और उसका डिसिप्लिन सुधार सकें। क्योंकि घर में और किसी को बोल दें तो वो लड़ने को तैयार हो जाता है। इसलिए उन्होंने ये बहुत बढ़िया नुस्खा निकाला है कि बीवी पर नाराज हुए तो कुत्ते को पीट दिया। बेटे पर गुस्सा आया तो भी कुत्ते को पीट दिया। कुत्ता है बेचारा तो वो कुछ बोल तो सकता नहीं सरकार की मार से आहत गरीब की तरह  बस पूं पूं करके रह जाता है। 

एक कप्तान साहब थे। उनके तीन बेटे तीनों कलेक्टर कप्तान साहब रिटायर होकर लौटे तो जो बात उन्हें सबसे ज्यादा खली वो थी मातहतों की कमी... बीवी को कुछ बोल नहीं सकते बेटे उन्हें भाव नहीं देते और बहुएं तो उनसे अंग्रेजी में बात करतीं। कप्तान साहब ठहरे निरा सरकारी नौकरशाह सुबह होते ही जब तक दो चार की डिसिप्लिन न सुधार लें उन्हें कब्ज की शिकायत रहती। अब उन्होंने कुत्ता पाल लिया। वो कहते हैं तो बैठता है कहते हैं तो उठता है। खिलाते हैं तो खाता है। बस इतनी सी बात होती है और वो खुश हो जाते हैं। 

एक और कुत्ता प्रेमी थे रामदीन जिन्हें अपने कुत्तों को कुत्ता कहना बिल्कुल पसंद नहीं था इसलिए उसने उनके अलग अलग नाम रख रख दिये हीरा मोती जबरा डबरा खबरा आदि आदि... मातादीन के पास भी कुत्ते थे । जिन्हें पहले तो वो कुत्ता ही समझते थे लेकिन जब से रामदीन के साथ बाहुबल का कंपटीशन शुरू हुआ है उन्होंने भी अपने कुत्तों का नामकरण कर दिया । सोमई, मंगरे, बुधई बिफई आदि आदि....।

उन्हें पाला कैसे भी जाय पर आखिरकार कुत्ते तो ठहरे कुत्ते ही.. उनमें आदमियों की तरह फिरकापरस्ती तो होती नहीं, जो जाति या धरम देखकर ब्यवहार करें। दलित कुत्तों की समस्याओं के लिए ब्राह्मण कुत्तों को जिम्मेदार ठहराएं.... कुत्ता ब्राह्मण हो तो वो अपनी समस्याओं के लिए आरक्षण को गरियाये... इनमें से कुछ नहीं है तो फिर हिन्दू मुस्लिम वाला एंगल तलाशा जाय...दोनों की परस्पर दुश्मनी का कोई भी असर इन कुत्तों पर नहीं था। रामदीन का कुत्ता कभी मातादीन के घर चला जाता या कभी मातादीन का कुत्ता भी रामदीन के घर आ जाता। ये बातें दोनों ही कुत्ता मालिकों को बड़ी नागवार गुजरती.... हालांकि उनके साथ रहने से दोनों का ही फायदा था। छुट्टे जानवरों के आने पर जब इतने सारे कुत्ते एक साथ भौंकते थे तो उनके लिए दुम दबाकर भागने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं बचता था। इस तरफ से हीरा दबंग किस्म का था तो उस तरफ का सोमई दोनों साथ साथ जब पांवों से धूल उड़ाते और भौंकते तो पिद्दी जैसे लगने वाले बुधई जैसों में भी शेरों जैसा जोश आ जाता और वो जानवरों को ऐसा भगाते कि वो फिर वापस आने का रास्ता ही भूल जाते।

वैसे तो कुत्तों का मुख्य काम खेतों की रखवाली करना है लेकिन जब से वो स्टेटस सिंबल बने हैं उनके काम भी बृहद हो गये हैं। अब वो मुंह चाटने से लेकर तलवे चाटने तक का काम करने लगे हैं। उन्हें किसे देखकर भौंकना है या किसे देखकर चुप रहना है इस बात की उन्हें बाकायदा ट्रेनिंग दी जाने लगी। जिसके बाद अब वे खेती में आये छुट्टे जानवरों पर कम और एक दूसरे पर ज्यादा भौंकने लगे। कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि जानवरों ने पूरा खेत साफ कर दिया लेकिन ये आपस में ही भिड़े रहे... 

उन कुत्तों के अन्य गुणों को छोड़कर एक गुण सर्वब्यापी और सर्वमान्य है कि वो  किसे देखकर भौंकेंगे या किसे देखकर दुम हिलाएंगे...

#चित्रगुप्त

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