हम लड़के
हम लड़के
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हम भी पैदा ही हुए हैं
कोई धरती फोड़कर नहीं निकले
या आसमान से नहीं गिरे
फिर तुम्हारे अरमान
और मेरे प्रान
एक ही तराजू में आजू बाजू क्यों रखे हैं?
जब पहली बार लड़खड़ाते हुए धरती पर रखा था पाँव
और गिर पड़ा था धम्म से
फिर भर ली थी सांसें बुक्का फाड़कर रोने के लिए
और माँ ने कहा था
'लड़के रोते नहीं हैं।'
वो पहली सीख थी आंसुओं को पी लेने की
हम रोते नहीं
फिर भी दर्द तो होता ही है न?
वक्त के फफोलों के साथ
नदी पहाड़ जंगल चीरकर
तुमसे मिलने के लिए मेरा मीलों का सफ़र
तुम्हारे इंतज़ार के आगे बौना हो गया।
मेरा रोटियां कमाने का जद्दोजहद
तुम्हारे रोटियां बनाने से हार गया।
अपना पूरा सामर्थ्य लगाकर और अपने सारे सपने भुलाकर भी तुम्हारे सपनों का न पूरा हो पाना
मुझपर एक कलंक सा लगता रहा
तुमने मेरा घर अपनाया
मैंने तुम्हारे सपने अपनाए
पर इबारतें तुम पर लिखी गईं
और मुझपर लानतें
तुमने अपनी स्वतंत्रता की आड़ में
ये मत खाओ
वो मत पीओ
ये मत पहनो
वहाँ मत जाओ
समय पर घर आओ
उफ कितनी पाबंदियां डाल दी मुझपर
बेटियां बाग की तितलियां हैं
इन्हें खूब पोसिये
पर लड़के भी तो भौंरे हैं
इन्हें भी मत कोसिये
मेरी कमियां या अच्छाइयां मायने नहीं रखतीं
मेरा पुरुष होना ही काफी है
आपके नफरत के लिए।
#चित्रगुप्त
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