इतना पढ़ने का क्या फायदा
इतना पढ़े लिखे का क्या फायदा है...?
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दो दोस्त बड़े दिन बाद स्टेशन पर मिले हैं। आठवी तक दोनों साथ ही पढ़े थे दूसरा गरीबी की मार से बाप के काम मे हाथ बंटाने लगा यानी स्टेशन पर चना बेचने लगा वहीं पहले वाले जनाब पढ़ते रहे....
जब तक पहले ने दसवीं पास किया तब तक दूसरे ने चने के साथ गोलगप्पे भी बेचना शुरू कर दिया था।
जब तक इनका इंटर हुआ तब तक उसने स्टेशन पर ही एक दुकान किराए पर ले लिया था।
जब तक इन्होंने ग्रेजुएशन किया तब तक उसने घर बना लिया।
फिर इन्होंने बीएड किया तब तक उसकी शादी हो गई थी।
बीएड के बाद भी जब इन्हें कुछ नहीं मिला तो प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगे और पिछले दो सालों से वहीं पढ़ा रहे हैं।
तो अब बात मिलने से शुरू करते हैं।
"का कर रहे हो भैया मनोज आज कल...?" दुकान वाले ने पूछा है।
"प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहा हूँ और इधर-,उधर कहीं कुछ निकलता है तो भरता भी रहता हूँ।"
"हहहहहहह....का फायदा भैया अतने पढ़े लिखे से...? हमें देखो घर परिवार बाल बच्चे सब कर लिया और अबहिन तुम नौकरिए ढूढ रहे हो...."
मास्टर साब उसकी बातों से थोड़ा झेंप से गये हैं। और दूर जाकर बेंच पर बैठ गये हैं। थोड़ी देर बाद ही शोर शराबा सुनकर वो देखते हैं तो कुछ कॉलेज के लड़के उसी दुकानदार सहपाठी की कॉलर पकड़े उसे गालियां बक रहे हैं। यह देख मास्टर साब भी वहाँ पहुँच जाते हैं। सौभाग्य से वो लड़के मास्टर साब की कोचिंग के ही हैं तो दौड़कर उनका पैर छूते हैं। ये डांटते हैं तो वो चले जाते हैं।
अब मास्टर साहब धीरे से जाकर अपने दुकानदार सहपाठी की कॉलर ठीक करते हैं पर जाते हुए इतना कहना नहीं भूलते.... "इतना पढ़ने लिखने का यही फायदा होता है दोस्त!"
#चित्रगुप्त
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