ग़ज़ल
जंगलों से पेड़ ही जब अलहदे हो जाएंगे।
हम परिंदे आसमां के सिरफिरे हो जाएंगे।
यूँ तो बच्चे आज कल के बाप के भी हैं नहीं
आप गर हंसकर मिलोगे आपके हो जाएंगे।
देखकर टीवी मोबाइल फेसबुक और व्हाट्सएप
तुम समझते हो कि बच्चे बाप से हो जाएंगे।
जुल्फ काली आंख काली उसपे काला तिल भी है
इसतरह देखा किये तो बावरे हो जाएंगे।
इश्तहारों तख्तियों में हक़ की जो बातें लिखीं
सब चुनावी पैंतरे हैं लिजलिजे हो जाएंगे।
हाथ जोड़े पाँव में गिरते हैं जो मजलूम से
जीत जाने दो इन्हें रणबांकुरे हो जाएंगे।
#चित्रगुप्त
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