नैहर
नैहर **** “हे भैया पिंटू सुनो, आज तुम्हारे माँ बाऊ जी हस्पताल गए हैं तो चलो मुझे महदेवा घुमा लाओ बहुत दिन हुए नैहर देखे. भैया, भौजी तो बचे नहीं पर भतीज लोग तो हैयै हैं.” दादी ने अपने पोते से मनुहार किया जो चौकी पर बैठा कोई तिकड़म लड़ा रहा था. “हम नहीं जायेंगे दादी मेरा पैर दर्द कर रहा है.” पोते ने अनमने ढंग से उत्तर दिया. “अरे! पैर दर्द कर रहा है तो लाओ हम दबाए दे रहे हैं पर हे बछौवा तनी घुमाय देव! तुम गेंद के लिए अपनी अम्मा को बोल रहे थे न? हम दिलवाए देंगे और कुछ खा पी भी लेना. पर चलो भैया, जल्दी से तैयार हो जाओ बहुत दिन हुए अपना मुलुक देखे.” गेंद का नाम सुनकर पिंटुआ खुश हो गया. उसने साइकिल निकाली, झाड़ा पोंछा और दादी भी कमीज पहनकर चश्मा लगाई और डंडा लेकर तैयार हो गईं. “अरे पिंटुआ तुम्हारा गेंद कितने का मिलेगा रे?” “पचास रुपये.” दादी ने अपना पूरा धरी-धरोहर ढूंढा कुल जमा चौवन रुपये. सारी नोटों का उन्होंने बड़े सलीके से तह बनाकर अपनी कमीज की जेब के हवाले कर लिया और सिक्कों को इकट्ठा करने लगीं. “पर इसमें तो ये वाले एक के सिक्के अब नहीं चलते दादी.” पिंटुआ ने उनमें से पुराने सिक्कों को...