एक समंदर गहरा भीतर
'वेद मित्र शुक्ल' कवियों की भीड़ में कबीर की लुकाठी लिए यथार्थ के धरातल पर खड़ा एक ऐसा कवि जो कहानियां भी लिखता है, शोध प्रबंध भी लिखता है, आलोचना भी लिखता है। बाँसुरी भी बजाता है, तबला भी बजाता है...। मिलने पर जो बात बोलना भूल गया था वो यह कि "भैया सब आप ही कर लोगे क्या या कुछ मेरे लिए भी छोड़ोगे।"
अंग्रेजी साहित्य और मेरा संबंध घोड़े और भैंसे वाला ही रहा है इसलिए सॉनेट का नाम तो सुना था पर इसके बारे में ज्यादा कुछ पता न था।
बाद में पता चला सॉनेट अंग्रेजी कविताओं की एक जानी मानी विधा है। हिंदी में सॉनेट को एक विधा के रूप में स्थापित करने का श्रेय 'त्रिलोचन शास्त्री' को जाता है।
यह एक मुश्किल विधा है, जिसमें पहली और चौथी पंक्ति का तुक, साथ ही दूसरी और तीसरी पंक्ति का तुक समान होता है।
उदाहरण के लिए देखें-
जब भी कबिरा के पथ पर है बाजार पड़े
गुजरे पर नहीं खरीदे कुछ यों राम राम
जपता जाए पर कबिरा का था बड़ा काम
सब सेठ उठाते लाभ इसी का चतुर बड़े।
काम मुश्किल है तो इसे करने वालों की संख्या भी कम ही है। पिछले लगभग दो दशकों से ढूढ़-ढूढ़ कर किताबें पढ़ने के बावजूद ये पहला सॉनेट संग्रह है जिसे पढ़ने का सौभाग्य मुझे मिला है।
"एक चाय पर कितनी बातें मीठी-तीखी
कैसी भी हों बातें करना अच्छा लगता
बात-बात में जुबाँ नजर की भी हो सीखी
फिर भी नासमझी करके दिल खुद को ठगता।
बस बतियाना औ कुछ नहीं करें करने को
धीरे-धीरे दिल में छुपे राज खुलने को।
सच ही है सुंदर होना किसी त्रासदी से कम थोड़ी है। सुना है जंगल के सीधे पेड़ सबसे पहले काटे जाते हैं। यहां लेखक तितली बनकर उड़ने में नुकसान की बात कर रहा है।
"सुंदरता जी लेना आसां कब है प्यारे
ख़तरा होता है तितली से हो उड़ने में
रंगीले पर नोचे हैं सब के सब प्यारे
जाने क्या सुख क़ुदरत का दुश्मन बनने में"
आम आदमी के लिए घर का सपना बहुत बड़ी बात होती है। कवि जब इस भावना में समाहित होकर लिखता है तो कुछ यूं लिखता है।
"बसा सकें जो एक घर अपना बड़ी बात है
लगे सरल पर नहीं सरल है जीकर जाना
सच कर पाना घर का सपना बड़ी बात है
इस सच से शायद ही कोई हो अनजाना''
समाज की विद्रूपताओं पर कविताओं के जरिये व्यंग्य बाण चलाने का जो सिलसिला कबीर ने शुरू किया था उसी परंपरा का निर्वहन उनके बाद के अनेक कवियों ने भी किया। आज का यह समय जब असमानता अशिक्षा शोषण और इन सबसे इतर असंवेदनशीलता जिस तरह से गली-गली अपना पाँव पसार रही है? समकालीन कविताओं में इनके प्रति रोष स्वाभाविक ही है। प्रस्तुत संग्रह में भी कई सोनेट्स ऐसे हैं जिसमें कवि का अपना रोष/दुःख शब्द बनकर कागज पर उतर आया है-
ईमान बेचने वाले मिलते डगर-डगर
झूठे के पलड़े भारी ही रहते देखो
सच्चे तो घाटे पे घाटे सहते देखो
सब इक जैसे ही कस्बे हो या महानगर
बचपन में थे इतिहास गणित भूगोल बिके
गुरु और शिष्य का गया जमाना फिक्र किसे
मौलवी रहा या पंडित समझा कभी जिसे
तप दान धर्म सच्चाई इनपे कहाँ टिके
अब नफ़ा नहीं है गला काटते हाट सजे
औ डॉलर-कॉलर वाले करते दोस्त मजे
इक, औ, नफ़ा जवां आदिक शब्दों के चुनाव से यह भी जाहिर हुआ कि कवि ने अपने सॉनेट्स का सृजन गजलगोई के साथ-साथ किया है। वैसे देखा जाए तो हिंदी कवि ऐसे शब्दों के चयन से बचते रहे हैं। लेकिन इन सॉनेट्स में शब्द अपने आप आये हैं जो आमजन की भाषा है कवि की भाषा भी वही है।संग्रह की भाषा सहज और सरल है वहीं भाव ऐसे तीक्ष्ण कि बात निकले तो सीधे दिल मे जाकर ठक से लगे।
"काश मछलियां उड़ सकतीं तो अच्छा होता
गीत नदी के नहीं मात्र पर सब कुछ गातीं
कभी मरुस्थल कभी पर्वतों तक उड़ आतीं
बैठ किनारे पर मछुआरा कुछ तो रोता।"
आँखिन देखी इस जहान की असल कहानी
सुख दुःख धन वन गाँव शहर सब कुछ है मिलता
भूख गरीबी कुछ भी लेकिन जीवन चलता
मैदानी या रेगिस्तानी राह सुहानी।
विधा तो बस एक मंच जैसी होती है। बाकी सारा खेल रचनाकार ने ही दिखाना होता है। रचना शब्द रूप में रचनाकार का ही प्रतिरूप होती है। कवि के व्यवहार का खिलंदड़पना बचपन की कविता बनकर कागज पर कुछ यूँ उतरता है।
"बे पर की चिड़िया सी बातें फिर भी सुनते
उससे ऐसा प्यार हमारा मत पूछो जी
जिद है उसमें लेकिन इच्छा पूरी करते
बचपन है होता है न्यारा मत पूछो जी
मन आये तो कागज़ की कश्ती तैराये
बोलो ऐसा बचपन किसको नहीं सुहाये।
विषय वैविध्य, सम्प्रेषणीयता, बेहतरीन शब्द चयन, भावप्रणता, सहजता, सरलता संग्रह के सॉनेट्स की विशेषतायें हैं। इन रचनाओं की सहजता ऐसी है जो बड़ी मुश्किल से हासिल की जाती है। रचनाएं मक्खन सी मालूम तो जरूर होती हैं लेकिन उसके पीछे की मेहनत वही जानता है जिसने दूध में जामन डालकर उसे जमाया होता है और फिर मथानी चलाकर उसमें से मक्खन निकालता है।
इम्तहान में बैठ सके तो बड़ी बात है
और अगर उत्तीर्ण हुए तो क्या कहना है
जीवन में हर एक परीक्षा ही गहना है
सफल- विफल होना तो ज्यों दिन और रात है
होती है हर साँस परीक्षा ऐसा मानो
मगर सहज होकर ही यारा जीना जानो।
पुस्तक- एक समंदर गहरा भीतर
विधा- हिंदी सॉनेट
प्रकाशक- अकैडमिक पब्लिकेशन दिल्ली
मूल्य- 295/-
Comments
Post a Comment