तीसरा आदमी

तीसरा आदमी
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गाँव से मुख्यमार्ग की ओर एक छोटी सी सड़क जाती थी। जिसके दोनों ओर आम नीम जामुन पीपल पाकड़ शीशम बड़हर आदि के पेड़ लगे हुए थे। शीशम के पेड़ से एक सूखी हुई लकड़ी टूटकर बीच सड़क पर गिरी। लकड़ी ज्यादा मोटी और बड़ी तो नहीं थी लेकिन उसका आकार इतना तो था जिससे रास्ता अवरुद्ध हो सके। उसे पैदल तो आसानी से पार किया जा सकता था। लेकिन साइकिल या मोटरसाइकिल से दाएं बाएं होकर निकलना पड़ता। मुश्किल तेज गति से आने वाले के लिए था या रात में कोई पैदल भी जाता तो उसमें फंसकर गिर सकता था।

शाम का वक्त था और आने जाने वालों की संख्या बेहद कम... कुछ देर बाद पहला आदमी उस ओर से गुजरा। उसने बगल के खेत वाले को जो थोड़ी दूर पर निराई कर रहा था उसे आवाज देकर कहा- "भैया! लकड़ी टूटकर गिरी है जाते समय उठाकर ले जाना..."

कुछ और देर बाद दूसरा आदमी भी गुजरा उसने लकड़ी को पड़ा देखा तो कहने लगा- "कैसे-कैसे आदमी हैं बीच रास्ते में इतनी बड़ी लकड़ी पड़ी है लेकिन कोई हटाएगा नहीं, लोग मोटरसाइकिल से भर्र से आएंगे और कमर टेढ़ा करके इधर-उधर से निकल जाएंगे लेकिन ये भी नहीं है कि एक लात इसमें भी मार दें और ये साइड हो जाये। पड़ी रहन दो स्साली को जब तक दो चार गिरेंगे नहीं तब तक अकल कहाँ से आएगी।

इनके बाद एक तीसरा आदमी भी उधर से गुजरा उसने चुपचाप लकड़ी उठाई और उसे साइड करते हुए चला गया।

इस देश को सबसे ज्यादा जरूरत इस तीसरे आदमी की ही है।

#चित्रगुप्त

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