दार्शनिक
प्रकृति में जो भी है सब नपा-तुला है
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(जनश्रुति)
एक थे दार्शनिक, वो कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्होंने देखा कि खेत में बड़े बड़े कद्दू लगे हुए थे।
थोड़ा आगे चलकर पीपल का एक पेड़ मिला। दार्शनिक जी अब तक पूरे तरीके से थक चुके थे। इसलिए आराम करने के उद्देश्य से वह वहीं पीपल के नीचे बैठ गये।
दार्शनिक का दिमाग था कुछ न कुछ तो सोचना ही था। उन्होंने पीपल के पेड़ पर लगे उसके फल देखे और सोचने लगे... एक वह कद्दू का पौधा जो अपने दम पर खुद खड़ा नहीं हो सकता और जमीन पर ही फैलता है, या किसी अन्य चीज के सहारा मिल जाय तो ही खड़ा हो पाता है। उसमें उतने बड़े बड़े फल... और एक ए पीपल का पेड़ जो हजारों कद्दुओं का बोझ एक साथ उठा सकता है? इसमें इतने छोटे छोटे...
दार्शनिक ने फ़टाफ़ट अपना निष्कर्ष निकाल लिया--
"बनाने वाले से जरूर कोई ग़लती कर दी."
यही सोचते सोचते उन्हें नींद आ गई और वे पीपल के नीचे ही गमछा बिछाकर सो गये।
थोड़ी देर में हवा का एक झोंका आया जिससे पेड़ की डालियां हिलीं तो उसपर बैठे कौवे उड़ गये।
कौवों के उड़ने से तीन चार पीपल के फल टूटकर सीधे दार्शनिक की नाक पर गिरे और उनकी नींद खुल गई।
वो झट से उठकर बैठे और सोचने लगे... "नहीं यार बनाने वाले ने ठीक ही बनाया... नहीं तो अगर इसपर कद्दू जैसे फल लगे होते तब तो आज कल्याण ही हो गया होता"
#चित्रगुप्त
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