ग़ज़ल
है ख़राबी इश्क में तो फिर ख़राबी ही सही है
ए समझदारों जरूरत आपकी मुझको नही है।
हुस्न से मतलब की बातें रह गये जो ढूढने में
इश्क उनके ही लिए बस दूर की कौड़ी रही है।
कुछ नहीं छोड़ा बुजुर्गों ने सुखन में कह गए सब
ढूढ़ने जाऊं कहाँ हर बात पहले की कही है।
जो लिया या जो दिया है सब हिसाबों में दिखेगा
हो रही तैयार सबके वक्त की खाता बही है।
कोई ज्यादा कोई थोड़ा हैं मगर नंगे सभी हैं
दाग मेरे ढूढ़ता है यार तू भी तो वही है।
#चित्रगुप्त
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