ग़ज़ल

दोस्त थे तो फ़र्ज़ भी थोड़ा निभाना चाहिए था
जब गिरा था मैं कमसकम मुस्कुराना चाहिए था।

दूर होना थी मेरी ग़लती अगर ये मान भी लूँ
ये समझदारों तुम्हें तो पास आना चाहिए था।

दूध का ढक्कन खुला रखना नहीं था हाँ मगर इन
बिल्लियों को तो जरा सा शर्म खाना चाहिए था।

नर्मो नाजुक बात तो कुछ थी हमारे बीच में भी
कुछ नहीं होता तो अब तक भूल जाना चाहिए था।

रूठना तो ठीक है पर कब तलक ये भी तो सोचो
जब मनाने वो लगे थे मान जाना चाहिए था।

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